नई दिल्ली: 2024 लोकसभा चुनावों से ऐन पहले एक बार देश में किसान आन्दोलन खड़ा हो गया है। जिसके निशाने पर एक बार फिर मोदी सरकार है, किसानों का आरोप है कि दो साल पहले जो आश्वासन मोदी सरकार ने देकर तेरह महीने तक चले किसान आन्दोलन को खत्म कराया था,उसमें से एक भी वादा पूरा नहीं किया है अभी तक।पंजाब और हरियाणा के लाखों किसान संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर दिल्ली कूच कर चुके हैं, जिसमें हरियाणा पंजाब के शम्भु बॉर्डर पर किसानों और हरियाणा पुलिस के बीच तीखी झड़प चल रही है। किसानों को रोकने के लिए पुलिस आंसू गैस के साथ ही रबर बुलेट का इस्तेमाल कर रही है, वहीँ किसान किसी भी तरह दिल्ली न पहुंचे उसके लिए पहले से इस बार बैरीकेडिंग-कंटीले तारों के साथ इस तरह बंदोबस्त किया जैसे ये कहीं युद्ध का नजारा हो। विपक्षी राजनीतिक दलों ने किसानों को अपना समर्थन दिया है। बीते दो दिनों में कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में किसानों से सरकार की बात बे नतीजा रही है, जबकि किसानों पर हिंसा का इस्तेमाल करने पर देश भर के अन्य किसान संगठन भड़क थे हैं और उन्होंने 15 फरवरी को पंजाब में रेल चक्का जाम और हाइवे टोल फ्री करने का ऐलान कर दिया है। कई किसान संगठनों ने पहले से ही 16 फरवरी को भारत बंद का आह्वान किया है। जिसको लेकर सरकार खासा दबाब में है।
सबसे पहले जानते हैं कि किसानों की मांगें क्या है:
1. सभी फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की गारंटी के लिए एक राष्ट्रीय कानून बनाया जाए।
2. सरकार देश भर के किसानों का सारा कर्ज माफ कर दे। 3. भूमि अधिग्रहण काननों 2013 को लागू किया जाए। 4. अक्टूबर 2021 में लखीमपुर खीरी में किसानों की हत्या करने वाले अपराधियों को कठोर से कठोर सजा मिले। 5. भारत W.T.O से अलग हो जाए और W.T.O के साथ होने वाले सभी free trade agreement रद्द हों। 6. किसानों और मजदूरों के लिए सरकार एक नई पेंशन स्कीम शुरू करे जिसके तहत सभी किसानों को 60 साल की उम्र के बाद 10,000 रुपए हर महीने पेंशन के रूप में मिलें। 7. 2020 और 2021 के किसान आंदोलन मे मृतक किसानों के परिवारों को मुआवजा मिले और परिवार के किसी एक सदस्य को सरकारी नौकरी मिले। बिजली संशोधन विधेयक 2020 रद्द हो। 8. मनरेगा मजदूरों को 200 दिन मजदूरी की गारंटी और दैनिक मजदूरी 700 रुपए हो। 9. बिजली संशोधन विधेयक 2020 को रद्द किया जाए। 10. नकली बीज, कीटनाशक और उर्वरक बनाने वाली कम्पनियों पर सरकार सख्त कार्यवाही करे। 11. मिर्च और हल्दी जैसे मसालों के लिए राष्ट्रीय आयोग बनाया जाए। 12. जल, जंगल और जमीन पर मूल निवासी और आदिवासी के अधिकार सुरक्षित हों।
मोदी सरकार नहीं दिख रही गंभीर
फिलहाल जो मोदी सरकार का रवैया है उससे लग नहीं रहा कि वो किसानों की इन मांगों पर गंभीर है क्यूंकि किसान पिछले दो सालों से इस मांग को दोहरा रहे हैं। यही नहीं 13 फरवरी को दिल्ली कूच का आह्वान था किसानों उसके बाद भी अगर मोदी सरकार बेफिक्री दिखाती रही तो इसमें सीधा नजर आ रहा है कि जो पीएम मोदी किसानों के हितैषी होने के भाषण देते हैं वो जमीन पर उतने गंभीर नहीं है। अभी पूर्व प्रधान मंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न का ऐलान किए एक हफ्ता भी नहीं बीता तो वहीँ आज किसानों पर आंसू गैस के गोले और रबर बुलेट चलाई जा रही है, जिसकी आलोचना सभी किसान संगठन और विपक्ष कर रहा है। दो साल पहले भी किसान दिल्ली की सीमाओं पर 13 महीने तक कृषि कानूनों के खिलाफ डटे रहे, राजनीतिक नुकसान होता देख पीएम मोदी ने उन कानूनों को वापस लेने की बात कही, लेकिन किसानों की जो मांगे थीं वो यथावत रहीं।
विपक्ष को मिला मुद्दा
वहीँ किसान आन्दोलन के समर्थन में मुख्य विपक्षी कांग्रेस सहित सभी पार्टियां आ गयीं हैं और मोदी सरकार के रवैये की तीखी आलोचना की है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने फोन पर घायल किसानों का हाल भी जाना। जबकि सपा प्रमुख अखिलेश यादव, अरविन्द केजरीवाल, ममता बनर्जी ने भी केंद्र सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई है।
क्या होगा भविष्य
इस बार किसानों का जो रुख दिख रहा है वो पूरी तरह आर-पार की लड़ाई का दिख रहा है, उधर पश्चमी उत्तर प्रदेश के किसान और टिकैत गुट के राकेश टिकैत ने भी कहा है कि अगर किसानों को परेशान किया गया तो दिल्ली दूर नहीं है। लोकसभा चुनाव से पहले इंडिया गठबंधन से निपटने के प्लान के बीच किसान आन्दोलन ने मोदी सरकार और उसके रणनीतिकारों को उलझा दिया है। अगर ये आन्दोलन अगर तेज हुआ तो चुनावी पिच पर मोदी सरकार को भारी नुकसान का दावा किया जा रहा है, क्यूंकि आन्दोलन को कुचलने के लिए जिस पर इस बार बल प्रयोग किया जा रहा है उससे देश भर के किसान संगठन एकजुट हो रहे हैं। उधर विपक्षी दल कांग्रेस ने भी केंद्र में सत्ता में आने पर एमएसपी की कानूनी गारंटी के साथ ही स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू करने की बात कही है। ये मामला इस वजह से और तीखा होता जा रहा है मोदी सरकार के लिए। अभी हाल ही में बिहार में जिस तरह की राजनीतिक उठापटक हुई और कई राज्यों में विपक्षी नेता सीधे मोर्चा लेते दिख रहे हैं तो इस बार 2014 और 2019 जैसे आसान राह बनती नजर नहीं आ रही है। अगला एक सप्ताह न सिर्फ किसान आन्दोलन बल्कि देश की राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण होगा।