Monday, June 30, 2025

अखिलेश यादव जन्मदिन विशेष: विरासत से PDA की सियासत तक

 

जय प्रकाश

1 जुलाई 1973 को जन्मे अखिलेश यादव, जिन्हें प्यार से "टीपू" भी कहा जाता है, उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक प्रमुख चेहरा हैं। समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुलायम सिंह यादव के पुत्र अखिलेश ने अपनी राजनीति को विरासत, आधुनिकता और सामाजिक न्याय के मिश्रण से गढ़ा है। उनके जन्मदिन के अवसर पर, आइए उनकी राजनीतिक यात्रा, उपलब्धियों, नुकसानों और भविष्य की संभावनाओं पर विस्तार से नजर डालें।

प्रारंभिक जीवन और राजनीति में प्रवेश

अखिलेश यादव का जन्म उत्तर प्रदेश के सैफई में हुआ था। उनके पिता मुलायम सिंह यादव समाजवादी आंदोलन के दिग्गज नेता थे, जिन्होंने सपा की स्थापना की। अखिलेश ने ऑस्ट्रेलिया से पर्यावरण इंजीनियरिंग में पढ़ाई की, लेकिन पिता की विरासत ने उन्हें राजनीति की ओर खींचा। 2000 में कन्नौज से उपचुनाव जीतकर वे पहली बार सांसद बने। उनकी छवि एक युवा, शिक्षित और प्रगतिशील नेता की थी, जो समाजवादी विचारधारा को आधुनिक दृष्टिकोण के साथ जोड़ता था।

राजनीतिक उपलब्धियाँ

1. सबसे युवा मुख्यमंत्री

2012 में, 38 वर्ष की आयु में, अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने। सपा ने 2012 के विधानसभा चुनाव में 224 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत हासिल किया, जो अखिलेश के नेतृत्व और युवा अपील का परिणाम था। उनके कार्यकाल में कई विकास परियोजनाएँ शुरू हुईं:

  • लखनऊ मेट्रो: उत्तर प्रदेश में पहली मेट्रो परियोजना, जो आधुनिकता की दिशा में बड़ा कदम था।

  • 1090 वीमेन हेल्पलाइन: महिलाओं की सुरक्षा के लिए शुरू की गई इस सेवा ने यौन उत्पीड़न की शिकायतों को गुप्त और त्वरित तरीके से संबोधित किया।

  • लोहिया आवास योजना: ग्रामीण और शहरी गरीबों के लिए आवास प्रदान करने की महत्वाकांक्षी योजना।

  • समाजवादी स्वास्थ्य सेवा: 108 नंबर पर मुफ्त आपातकालीन एम्बुलेंस सेवा शुरू की गई।

  • लैपटॉप वितरण: युवाओं को डिजिटल रूप से सशक्त बनाने के लिए मुफ्त लैपटॉप वितरित किए गए।

  • एक्सप्रेसवे और इंफ्रास्ट्रक्चर: लखनऊ-बलिया समाजवादी पूर्वांचल एक्सप्रेसवे और जनेश्वर मिश्र पार्क जैसे प्रोजेक्ट्स ने उनके कार्यकाल को परिभाषित किया।

2. PDA रणनीति और 2024 की जीत

अखिलेश ने 2023 में "PDA" (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले की शुरुआत की, जो सामाजिक न्याय और समावेशी राजनीति का प्रतीक बना। 2024 के लोकसभा चुनाव में इस रणनीति ने सपा को उत्तर प्रदेश में 37 सीटें दिलाईं, जो पार्टी का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। उन्होंने गैर-यादव OBC, दलित और मुस्लिम वोटों को एकजुट कर बीजेपी के गढ़ों, जैसे अयोध्या, में जीत हासिल की। इस रणनीति ने सपा की पारंपरिक "मुस्लिम-यादव" (MY) छवि को तोड़कर व्यापक सामाजिक गठजोड़ बनाया।

3. संगठनात्मक सुधार

अखिलेश ने सपा को आधुनिक बनाने की कोशिश की। उन्होंने सोशल मीडिया का उपयोग बढ़ाया और युवा नेताओं को आगे लाया। 2024 में, उन्होंने ब्राह्मण और अन्य अगड़ी जातियों को शामिल कर "PDA+" फॉर्मूला अपनाया, जिससे पार्टी का आधार और विस्तृत हुआ। माता प्रसाद पांडे जैसे ब्राह्मण नेताओं की नियुक्ति ने सपा को उच्च जातियों में भी स्वीकार्यता दिलाई।

नुकसान और चुनौतियाँ

1. 2013 मुजफ्फरनगर दंगे

अखिलेश के मुख्यमंत्री कार्यकाल में 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों ने उनकी सरकार की छवि को गहरा नुकसान पहुँचाया। 43 लोगों की मौत और 93 घायल होने के बाद कर्फ्यू और सेना की तैनाती करनी पड़ी। इस घटना ने सपा पर सांप्रदायिक तनाव को नियंत्रित करने में विफलता का आरोप लगाया।

2. परिवारवाद और पार्टी में मतभेद

अखिलेश पर परिवारवाद का आरोप लगता रहा है। 2016 में उनके चाचा शिवपाल यादव और पिता मुलायम सिंह के साथ सार्वजनिक मतभेद ने पार्टी की एकता को कमजोर किया। हालाँकि, उन्होंने बाद में संगठन को एकजुट करने की कोशिश की, लेकिन कुछ नेताओं, जैसे पल्लवी पटेल, ने PDA को केवल "वोट बैंक" की रणनीति करार दिया।

3. 2017 और उपचुनावों में हार

2017 के विधानसभा चुनाव में सपा को बीजेपी के सामने करारी हार का सामना करना पड़ा। 2024 के उपचुनावों में भी, PDA रणनीति के बावजूद, सपा केवल दो सीटें जीत पाई, जबकि बीजेपी ने सात सीटें हासिल कीं। यह हार सपा की संगठनात्मक कमजोरी और सत्ताधारी दल के प्रभाव को दर्शाती है।

4. भ्रष्टाचार के आरोप

कुछ आलोचकों ने अखिलेश के कार्यकाल में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, विशेष रूप से भर्तियों और प्रतियोगी परीक्षाओं में। हालाँकि, ये आरोप सिद्ध नहीं हुए, लेकिन इनसे उनकी छवि प्रभावित हुई।

भविष्य का दृष्टिकोण

अखिलेश यादव की PDA रणनीति ने उन्हें उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत विपक्षी नेता के रूप में स्थापित किया है। 2027 के विधानसभा चुनाव में उनकी रणनीति और प्रदर्शन उनकी भविष्य की संभावनाओं को परिभाषित करेंगे। कुछ प्रमुख बिंदु:

  • PDA का विस्तार: अखिलेश ने PDA को और समावेशी बनाने की कोशिश की है, जिसमें ब्राह्मण और अन्य अगड़ी जातियाँ शामिल हैं। यदि यह रणनीति प्रभावी रही, तो सपा 2027 में बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सकती है।

  • युवा और डिजिटल अपील: अखिलेश की सोशल मीडिया उपस्थिति और युवा नेतृत्व उन्हें नई पीढ़ी के बीच लोकप्रिय बनाता है।

  • चुनौतियाँ: गैर-यादव OBC और दलित वोटों को पूरी तरह एकजुट करना और पार्टी के भीतर असंतोष को कम करना उनके लिए चुनौती होगा।

  • गठबंधन की रणनीति: 2024 में कांग्रेस के साथ गठबंधन ने सपा को फायदा पहुँचाया। भविष्य में भी गठबंधन की रणनीति उनकी सफलता की कुंजी हो सकती है।

 

अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी को एक नया चेहरा दिया है, जो मुलायम सिंह की विरासत को आधुनिकता और सामाजिक न्याय के साथ जोड़ता है। उनकी PDA रणनीति ने सपा को उत्तर प्रदेश में एक मजबूत विकल्प बनाया है, लेकिन संगठनात्मक एकता, भ्रष्टाचार के आरोपों का जवाब और सांप्रदायिक मुद्दों पर संतुलित रुख उनकी भविष्य की सफलता के लिए महत्वपूर्ण होंगे। 2027 का विधानसभा चुनाव यह तय करेगा कि क्या अखिलेश "टीपू" यादव उत्तर प्रदेश की सियासत के बादशाह बन पाएँगे।

जन्मदिन की शुभकामनाएँ, अखिलेश यादव! आपकी राजनीतिक यात्रा और सामाजिक न्याय की लड़ाई में नई ऊँचाइयाँ मिलें।


Thursday, June 19, 2025

राहुल गांधी और सामाजिक न्याय: भारत के भविष्य में उनकी भूमिका और संभावनाएं

 



जय प्रकाश

राहुल गांधी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेता और नेहरू-गांधी परिवार के वारिस, भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण और चर्चित व्यक्तित्व हैं। 19 जून 2025 को उनका जन्मदिन मनाया जा रहा है, और यह अवसर उनकी राजनीतिक यात्रा, सामाजिक न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, और भविष्य में उनकी संभावनाओं पर विचार करने का उपयुक्त समय है। भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा के बाद उनकी छवि एक ऐसे नेता के रूप में उभरी है जो सामाजिक समावेशन, जातिगत जनगणना, और वंचित वर्गों के उत्थान को अपनी राजनीति का केंद्र बनाना चाहते हैं।

 

राहुल गांधी की नई छवि और भारत जोड़ो यात्रा का प्रभाव

राहुल गांधी ने सितंबर 2022 में शुरू हुई भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से देश के विभिन्न हिस्सों में 4,000 किलोमीटर से अधिक की पैदल यात्रा की। यह यात्रा कन्याकुमारी से कश्मीर तक 12 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों से होकर गुजरी। इस दौरान उन्होंने सामाजिक एकता, आर्थिक असमानता, और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों को उठाया। इसके बाद जनवरी 2024 में शुरू हुई भारत जोड़ो न्याय यात्रा ने विशेष रूप से सामाजिक और आर्थिक न्याय पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें जातिगत जनगणना और वंचित समुदायों की हिस्सेदारी जैसे मुद्दे प्रमुख रहे।

इन यात्राओं ने राहुल गांधी की छवि को एक गंभीर और जमीनी नेता के रूप में मजबूत किया। पहले जहां उनकी छवि एक अनुभवहीन और विशेषाधिकार प्राप्त नेता की थी, वहीं अब वे एक ऐसे राजनेता के रूप में देखे जा रहे हैं जो लोगों के बीच जाकर उनकी समस्याओं को समझने और समाधान प्रस्तावित करने का प्रयास कर रहे हैं। खासकर, युवाओं, महिलाओं, और वंचित वर्गों के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ी है। भारत जोड़ो यात्रा में विभिन्न क्षेत्रों के लोग, जैसे कि फिल्मी हस्तियां, सामाजिक कार्यकर्ता, और आम नागरिक शामिल हुए, जिसने इसे एक जन-आंदोलन का रूप दिया।


सामाजिक न्याय का एजेंडा: जनता की समझ

राहुल गांधी ने सामाजिक न्याय को अपनी राजनीति का मुख्य आधार बनाया है, और इस दिशा में जातिगत जनगणना उनकी सबसे प्रमुख मांग रही है। उनका तर्क है कि जातिगत जनगणना भारत का "एक्स-रे" है, जो यह स्पष्ट करेगा कि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), और अन्य वंचित समुदायों की आबादी और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति क्या है। वे यह भी मांग करते रहे हैं कि आरक्षण की 50% की सीमा को हटाया जाए ताकि अधिक समुदायों को समान अवसर मिल सकें।

क्या जनता इसे समझ रही है?

राहुल गांधी का सामाजिक न्याय का संदेश खासकर उन वर्गों में गूंज रहा है जो ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रहे हैं। तेलंगाना और कर्नाटक जैसे राज्यों में कांग्रेस द्वारा कराए गए जातिगत सर्वेक्षणों ने दिखाया कि इन राज्यों की 90% आबादी दलित, आदिवासी, पिछड़े, और अल्पसंख्यक समुदायों से है। यह डेटा वंचित समुदायों को उनकी हिस्सेदारी और अधिकारों के प्रति जागरूक करने में मददगार साबित हुआ है। उनकी यात्राओं और रैलियों में यह देखा गया कि दलित, OBC, और आदिवासी समुदायों के बीच उनकी बातों को समर्थन मिल रहा है।

हालांकि, कुछ चुनौतियां भी हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी का यह एजेंडा शहरी मध्यम वर्ग और उच्च जातियों के बीच उतना प्रभावी नहीं रहा है, जो भारतीय जनता पार्टी (BJP) का मजबूत वोट बैंक है। इसके अलावा, उनकी रणनीति को कुछ लोग केवल "मंडल राजनीति" का हिस्सा मानते हैं, जो BJP के "कमंडल" (हिंदुत्व) एजेंडे का जवाब है। फिर भी, उनकी यात्राओं ने ग्रामीण और हाशिए के समुदायों में उनकी पहुंच को बढ़ाया है, और यह संदेश धीरे-धीरे जनता तक पहुंच रहा है।


प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं

राहुल गांधी को भविष्य में भारत का प्रधानमंत्री बनने की संभावना कई कारकों पर निर्भर करती है, जिसमें उनकी व्यक्तिगत छवि, कांग्रेस का प्रदर्शन, विपक्षी गठबंधन की एकजुटता, और देश की राजनीतिक परिस्थितियां शामिल हैं।

सकारात्मक पहलू:

  • विपक्षी गठबंधन (I.N.D.I.A.) का नेतृत्व: राहुल गांधी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में I.N.D.I.A. गठबंधन को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस गठबंधन ने 234 सीटें जीतीं, जिसमें कांग्रेस ने 99 सीटें हासिल कीं, जो पिछले दस वर्षों में उसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। यह दर्शाता है कि उनकी रणनीति विपक्ष को एकजुट करने में सफल रही।

  • सामाजिक न्याय का मजबूत एजेंडा: जातिगत जनगणना और वंचित वर्गों के लिए हिस्सेदारी की उनकी मांग ने OBC, SC, और ST समुदायों के बीच समर्थन बढ़ाया है। यह भारत जैसे जातिगत समाज में एक मजबूत राजनीतिक आधार प्रदान कर सकता है।

  • लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में प्रदर्शन: 2024 से लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में राहुल गांधी ने सरकार को कई मुद्दों पर घेरा है, जैसे कि मेक इन इंडिया की विफलता, नए मतदाताओं की संख्या में विसंगतियां, और जातिगत जनगणना। उनकी वाकपटुता और तार्किकता ने उन्हें एक गंभीर नेता के रूप में स्थापित किया है।

चुनौतियां:

  • BJP की मजबूत स्थिति: नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में BJP और NDA का मजबूत संगठन और हिंदुत्व का एजेंडा अभी भी एक बड़ी चुनौती है। BJP ने 2024 में 240 सीटें जीतीं और गठबंधन के साथ सरकार बनाई, जो उनकी स्थिरता को दर्शाता है।

  • विपक्षी एकता में अस्थिरता: नीतीश कुमार जैसे सहयोगी दलों का बार-बार पाला बदलना I.N.D.I.A. गठबंधन के लिए जोखिम है। इसके अलावा, क्षेत्रीय दलों जैसे TMC और AAP के साथ समन्वय की कमी भी एक बाधा हो सकती है।

  • राहुल की छवि पर सवाल: हालांकि उनकी छवि में सुधार हुआ है, लेकिन कुछ लोग अभी भी उन्हें "अनुभवहीन" या "वंशवादी" मानते हैं। उनकी कुछ विवादास्पद टिप्पणियां, जैसे 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम को परिवार की उपलब्धि बताना, उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाती हैं।

प्रधानमंत्री बनने की संभावना:

वर्तमान में राहुल गांधी को 2029 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद का दावेदार माना जा सकता है, बशर्ते कांग्रेस और I.N.D.I.A. गठबंधन मजबूत प्रदर्शन करे। विश्लेषक संजय झा का कहना है कि 2024 के परिणामों ने उन्हें नरेंद्र मोदी के विकल्प के रूप में "गंभीर दावेदार" बनाया है। हालांकि, कुछ लोग इसे "असंभव" मानते हैं, खासकर यदि BJP अपनी स्थिति मजबूत रखती है।


सहयोगी दल और नेता

राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनने के लिए विपक्षी गठबंधन का मजबूत समर्थन चाहिए होगा। I.N.D.I.A. गठबंधन में शामिल कुछ प्रमुख दल और नेता निम्नलिखित हो सकते हैं:

  • राष्ट्रीय जनता दल (RJD): लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव बिहार में OBC और दलित वोट बैंक के मजबूत नेता हैं। उनकी मंडल राजनीति राहुल के सामाजिक न्याय के एजेंडे से मेल खाती है।

  • समाजवादी पार्टी (SP): अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में OBC और मुस्लिम वोटों को एकजुट करने में सक्षम हैं।

  • द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (DMK): तमिलनाडु में एम.के. स्टालिन और DMK का समर्थन कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है। DMK ने सामाजिक न्याय के मुद्दों पर हमेशा कांग्रेस का साथ दिया है।
  • नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC): फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के महत्वपूर्ण सहयोगी हैं।

  • शिवसेना (UBT) और NCP (शरद पवार): महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और शरद पवार का समर्थन I.N.D.I.A. गठबंधन को मजबूती देता है।

  • अन्य क्षेत्रीय दल: तृणमूल कांग्रेस (TMC) की ममता बनर्जी और आम आदमी पार्टी (AAP) के अरविंद केजरीवाल के साथ समन्वय की संभावना है, हालांकि इन दलों के साथ मतभेद भी हैं।

हालांकि, नीतीश कुमार और उनकी पार्टी JD(U) की अस्थिरता एक जोखिम है, क्योंकि वे अतीत में NDA और I.N.D.I.A. के बीच पलट चुके हैं।


भारत जैसे विविध और जातिगत समाज में राहुल गांधी की उपयोगिता और जरूरत

भारत एक ऐसा देश है जहां जाति, धर्म, और क्षेत्रीय विविधता सामाजिक और राजनीतिक संरचना को गहराई से प्रभावित करती है। इस संदर्भ में राहुल गांधी जैसे नेता की उपयोगिता और जरूरत को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:

  • सामाजिक समावेशन का प्रतीक: राहुल गांधी का सामाजिक न्याय और जातिगत जनगणना पर जोर भारत के 60% से अधिक OBC, SC, और ST आबादी को संबोधित करता है। उनकी नीतियां, जैसे SC/ST सब-प्लान को कानूनी रूप देना और आरक्षण की सीमा हटाना, वंचित वर्गों को सशक्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।

  • विपक्षी एकता का केंद्र: BJP के मजबूत संगठन के सामने विपक्ष को एकजुट करने के लिए एक करिश्माई और स्वीकार्य नेता की जरूरत है। राहुल गांधी की यात्राओं और गठबंधन-निर्माण की रणनीति ने उन्हें इस भूमिका के लिए उपयुक्त बनाया है।

  • युवा और महिला मतदाताओं की अपील: भारत जोड़ो यात्रा के दौरान महिलाओं और युवाओं का समर्थन राहुल गांधी की लोकप्रियता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। उनकी सादगी और जमीनी स्तर पर काम करने की शैली युवा पीढ़ी को आकर्षित करती है।

  • संवैधानिक मूल्यों की रक्षा: राहुल गांधी ने बार-बार संवैधानिक मूल्यों, जैसे समानता और सामाजिक न्याय, पर जोर दिया है। यह भारत जैसे विविध देश में सामाजिक एकता को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है।

  • आर्थिक असमानता का मुद्दा: राहुल गांधी ने देश में बढ़ती आर्थिक असमानता और कॉरपोरेट्स के प्रभुत्व को बार-बार उठाया है। उनका दावा है कि देश की 90% आबादी के पास केवल 6% संसाधन हैं, जो सामाजिक और आर्थिक अन्याय को दर्शाता है।

चुनौतियां और सीमाएं:

  • जातिगत राजनीति का जोखिम: सामाजिक न्याय का एजेंडा जहां वंचित वर्गों को आकर्षित करता है, वहीं यह समाज में विभाजन की रेखा भी खींच सकता है, जैसा कि कुछ आलोचकों ने चेतावनी दी है।

  • क्षेत्रीय दलों की प्राथमिकताएं: क्षेत्रीय दल अपने स्थानीय हितों को प्राथमिकता दे सकते हैं, जिससे राष्ट्रीय स्तर पर एकजुटता बनाना मुश्किल हो सकता है।
  • BJP का हिंदुत्व कार्ड: BJP का हिंदुत्व और विकास का मिश्रित एजेंडा अभी भी शहरी और मध्यम वर्ग के बीच लोकप्रिय है, जो राहुल गांधी के लिए चुनौती है।

निष्कर्ष

राहुल गांधी की सामाजिक न्याय की लड़ाई और भारत जोड़ो यात्राओं ने उनकी छवि को एक जमीनी और गंभीर नेता के रूप में मजबूत किया है। उनका जातिगत जनगणना और वंचित वर्गों की हिस्सेदारी का एजेंडा भारत के सामाजिक ढांचे को संबोधित करता है और खासकर OBC, SC, ST, और अल्पसंख्यक समुदायों के बीच समर्थन हासिल कर रहा है। हालांकि, उनकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वे कितनी प्रभावी ढंग से विपक्षी गठबंधन को एकजुट रख पाते हैं और BJP के प्रभुत्व को चुनौती दे पाते हैं।

प्रधानमंत्री बनने की संभावना 2029 में मजबूत हो सकती है, बशर्ते I.N.D.I.A. गठबंधन एकजुट रहे और कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर हो। RJD, SP, DMK, और NC जैसे सहयोगी दल और लालू यादव, अखिलेश यादव, और स्टालिन जैसे नेता इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। भारत जैसे विविध और जातिगत समाज में राहुल गांधी जैसे नेता की जरूरत इसलिए है क्योंकि वे सामाजिक समावेशन और संवैधानिक मूल्यों को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं। उनकी उपयोगिता इस बात में निहित है कि वे वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाने और भारत की राजनीति को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।

 


अखिलेश यादव जन्मदिन विशेष: विरासत से PDA की सियासत तक

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